कोई भी राष्ट्र उन्नत नहीं हो सकता, जिसका औसत व्यक्ति बौना हो और जिनके
बीच कुछ ही विशालकाय असामान्य व्यक्तित्व खड़े हों। विदेश इतिहासकार तथा उस
समय के यात्रियों के भी तुलनात्मक अध्ययन हमें बताते हैं कि इस देश का
जनसाधारण अन्य देशों के सामान्यजन से, एक समय में, अतुल्य श्रेष्ठ था। इसका
स्पष्ट कारण था कि हमारे समाज के नेताओं ने समाज के प्रत्येक स्तर में
हमारे सांस्कृतिक संस्कारों को निर्विष्ट करने के लिये लगातार अथक प्रयत्न
किये थे। इसीलिये हमारे समाज के प्रत्येक वर्ग से सन्त-महात्मा तथा शूरवीर
मिलते हैं, जिनके विचारों एवं ‘कृतियों’, गीतों एवं कथनों ने सम्पूर्ण ऊपरी
व्यवधानों को पार करते हुए हमारे लोगों को प्रेरणा दी है।
-प०पू० श्रीगुरुजी
-प०पू० श्रीगुरुजी
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