केवल ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है, जिसने स्वयं अपना चरित्र श्रेष्ठ बनाया
हो और अपने सम्पर्क में जो व्यक्ति आयें उनको श्रेष्ठ आचरण सिखाये और इस
प्रकार उनके द्वारा अन्य लोगो को श्रेष्ठ संस्कार देते जाने की परम्परा आगे
बढे, तो ही अपना यह राष्ट्र सुसंस्कृत होकर विश्व का मार्गदर्शन करने का
अपना उद्देश्य पूर्ण कर सकेगा |
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