भारत में विकास का मतलब है शरीर, मन, बुध्दि, आत्मा का संतुलित सुख। आंतरिक
एवं बाहरी अमीरी का संतुलन रहे। तदनुसार सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक,
सांस्कृतिक व्यवस्था हो। तदनुसार शिक्षा संस्कार भी हो। समाज में समृध्दि
और संस्कृति का संतुलन बना रहे, वही सही विकास होगा। विकास की अवधारणा समाज
से जुड़ी हुई है। हम समाज कैसा चाहते हैं? इसी से तय होगा कि विकास हुआ या
नहीं। वास्तविक विकास मानवकेन्द्रित न होकर पारिस्थितिकी केन्द्रित होता
है, एक ऐसी व्यवस्था जिसमें जमीन, जल, जंगल, जानवर, जन का परस्पर पोषण होता
रहे। व्यक्ति का परिवार, पड़ोस, समाज, दुनिया, प्रकृति के साथ तालमेल बना
रहे। वही तकनीक सही मानी जाएगी जो आर्थिक पक्ष के साथ पारिस्थितिकी एवं
नैतिक पक्ष का भी ध्यान रख सके।
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