Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad -Sangli
Friday, 10 July 2015
Saturday, 4 July 2015
CAMPUS LEADER ऐसा होता है !
विद्यार्थी परिषद् का
CAMPUS LEADER ऐसा होता है !
प्रकाशक
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्
सांगली जिल्हा अभ्यास वर्ग
लोकमान्य तिलक स्मारक ,सांगली
प्रस्तावना
वह लड़ता है ,वह पढ़ता है ,वह सभी का मित्र है ,वह सभी के दुःख का साथी । उसका स्वार्थ शुन्य है । उसके आते ही सभी में एक उत्साह का वातावरण छा जा जाता है ,उसके साथ बात कर सभी स्वयं का दुःख भूला देते है। दुःख की फरियाद सुनता है ,वह सुख का पहला अभिनन्दन करता है महाविद्यालय में सभी उसके जैसा जीवन जीना चाहते है। वह सबके दिलो दिमाग पर छाया रहता है । प्रद्यापक ,संचालक ,कर्मचारी और विद्यार्थी सभी उसे जानते है, उसकी तरह एक उत्सुकता की नजरो से देखा जाता है ।वह महाविद्यालय का नेता है , एक आदर्श छात्र नेता।
छात्र नेता की भूमिका
विद्यार्थी परिषद के कार्य के मूल में ऐसे छात्र नेताओं का निर्माण है जो सर्वसाधारण रूप से महाविद्यालय कैंपस पर रहते है ,सभी क्रिया कलाप उनके अन्य विद्यार्थियों जैसे हो होते है। परन्तु मर्यादा ,देशभक्ति और कार्यप्रणीता से वह हमेशा चर्चित रहते है।महाविद्यालय में तरुण जब इस छात्र नेता को देखते है , तो उसे यह प्रतीत होता है की यदि वह यह सब कर सकता है तो मै भी कर सकता हु । आज आदर्श हमसे दूर जा रहे है ,उन्हें दीवारो से उतार कर जीवन में अगर लाना है तो हमे ऐसे आदर्श स्वयं में बनाने होंगे ताकि सर्व सामान्य विद्यार्थी जो हमारे आस पास है प्रेरित हो सके । मनुष्य का स्वाभाव देख कर सीखने का होता है । वह अपने आस पास के लोगो का निरिक्षण करता है और उनसे प्रेरणा लेता है।विद्यार्थी परिषद छात्रों में उच्च चरित्र निर्माण हेतु इसी प्रमेय का उपयोग करती है। वह ऐसे दीपक जलाती है जो एक एक करके दूसरे दीपक जलाते है। सभी दीपको का सामूहिक प्रकाश बढ़ता जाता है और अँधेरा मिटता जाता है। यह दीपक एक छात्र नेता होता है ।
नीलकंठ
छात्र नेता अपमान और उपहास तो अपने सामर्थ्य से सह लेता है, को नीलकंठ बन पिता है, अपने अंदर एक ज्वालामुखी सतत पालता है।उत्पन्न आवेश को परावर्तित कर स्वयं में संचित करता है।उसे वह सात्विक ऊर्जा का रूप देता, और इस ऊर्जा प्रकटीकरण वह तब है जब पीड़ा दुसरो को पहुचती है ।दुर्बल कभी सहन नहीं करता ,उसका अहंकार उसे प्रतिक्रिया पर विवश करता है और वह अपनी ऊर्जा नष्ट करता है ।कभी आवेश में आकर स्वयं को प्रदर्शित करने हेतु वह विस्फोट नहीं करता। वह वह अविरत कार्य में लगा रहता है । लेकिन जब कभी पीड़ा किसी अन्य को पहुचती है ,वह फिर सत्य का शंखनाद करता है।
महत्वकंशी नहीं ध्येय्शील
वह कम में जीता है ,इसलिए दम में जीता है। उसकी जरूरते सिमित होती है ,ताकि वह दुसरो की जरुरतो पर ध्यान दे सके। उसकी अपनी कोई महत्वाकांक्षा नहीं होती, वह शेष की महत्वाकांक्षा का दोहन करता है, ताकि वह लोग कभी न कभी उसके परे देख ध्येय के लिए अग्रसर हो। उसे यह ज्ञान होता है की महत्वाकांक्षाओं की प्राथमिक पूर्ति कर व्यक्ति को कार्यशील बनाया जा सकता है और अनुभव उसे ध्येयशील। वह स्वयं के ध्येय हेतु व्याकुल रहता है।
आजादशत्रु
साधारणतः राजनैतिक परावेश में आप हमारे साथ है नहीं तो हमारे विरोध में जैसी मानसिकता होती है | यही आप मित्र नहीं तो शत्रु,आप हमारे विचारो को नहीं मानते तो विरोधी | इस मानसिकता से कारण हम उन लोगो को भी अपना विरोधी समझ लेते है जो तथ्ष्ट रहना चाहते है | हम धीरे धीरे सभी को अपना विरोधी बना लेते है ओर फिर यह पाते है की हम अकेले है | जब तक हम वर्चस्व की महत्वकंषा रखेंगे ,विरोध होता रहेगा | छात्र नेता का मन सदैव निर्मल रहता है | कभी किसी हेतु मन में द्वेष नहीं | वह सभी को अपना मित्र समजाता है | यदि कोई उसे तकलीफ भी पहुचाये तो कभी वह बदले की भावना से कार्य नहीं करता | यदि कोई विचारो का विरोध करता है तब भी वह उसके हेतु सात्त्विक भावना ही रखता है | वह किसी को अपना शत्रु नहीं समझता अपितु सभी को अपने कार्य की प्रेरणा समझता है |वह आजाद शत्रु होता है |
जैसा है वैसा स्वीकार :
संसार में सबसे बड़ा पाप किसी को बुरा अथवा पापी कह कर बहिष्कृत करने में है | ऐसा करने से हम उसके परिवर्तन की सरे मार्ग बंद कर देते है | वह यह तय कर लेता है की वह पापकर्म करने हेतु ही जन्मा है |इस तरह हम पाप को बढाने में अपने इस व्यव्हार द्वारा भागी पड़ते है| इसके अलावा आज महाविद्यालय कैंपस में जिस तरह Groupism बड रहा है, इस ही वर्ग में पड़ने वाले लोगो में मन मुटाव ओर वह हमारा है ओर हमारा नहीं जैसे भावनाए प्रबल हो रही है | छात्रों में यह प्रकृति विघातक है ओर कैंपस में वातावरण के बिगाड़ती है | हम मनुष्य का कार्य करते है ,मशीन नहीं | अतः कार्य करते समय हमे मानवीय संवेदनाओं और सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए | यदि आपने ऐसा नहीं किया तो संघठन कभी समाज नहीं बन पायेगा ,वह बस तात्कालिक समूह मात्र होगा | हमारा छात्र नेता कभी किसी को उसके स्वाभाव अथवा कमियों के कारण बहिष्कृत नहीं करता | वह प्रत्येक मनुष्य को उसके मूल रूप में स्वीकार करता है और राष्ट्र एवें समाज हेतु जैसा अपेक्षित वैसा उसके निर्माण हेतु प्रयत्न करता है | ओर धैर्य रखता है ओर सहन करता है |
The Magnetic Personality
वह अपने स्वाभाव ओर कर्यपद्दती जो की विद्यार्थी परिषद् प्रणित होती है,सभी को प्रभावित करता है | सभी जन सहज उसकी तरफ आकर्षित होते है,क्योंकी वह शांत होते हुआ भी सक्रिय होता है | उसका स्वाभाव अहंकारहीन होता है ,इसलिये छोटे बड़े सभी सरलता से उससे संवाद कर पाते है |उसे मनुष्य की पहचान होती है इसलिए वह जानता है की किससे कैसे ओर क्या व्यव्हार करना है | उसकी यह निति उसे सभी वर्गों ओर विचारश्रेणी में सम्मानीय बनाती है | इस तरह वह उन सभी संकीर्ण बाधायो को नष्ट कर चूका होता है जो उसे लोगो से जुड़ने से रोकती है |
सभी के विचारो का आदर
वह कभी विचारधारा को किसी पर लादता नहीं। वह यह समझता है की भारत की विविधता केवल भौगोलिक ,आर्थिक एवं सामाजिक ही नहीं बल्कि वैचारिक भी है। वह यह समझता है की सभी विचार अन्तः विश्व कल्याण हेतु है, उनमे संघर्ष मिथ्या है। वह किसी को उसकी विचार विशेष के लिए कभी आलोचित नहीं करता, अपितु उसके विकास के लिए जो आवश्यक वातावरण चाहिए ,उसे प्रदान करता है । वह सभी को यथा स्वरुप में स्वीकार करता है । उसके इसी शैली की वजह से वह विरोधियो में भी सम्मानित होता है।
तुफानो में भी अडिग
वह कभी विचलित नहीं होता। परिस्तिथियाँ कितनी ही निराशाजनक क्यों न हो ,वह सदैव कर्मप्रणीत रहता है। कभी धैर्य और धीरज नहीं छोड़ता।बाहर कितनी ही अराजकता क्यों न हो ,वह अपना मन और मस्तिष्का शांत रखता है। कभी आवेश में कार्य नहीं करता।अपनी इसी स्वभाव के कारण वह सभी कार्य समय के भीतर और गुणवक्ता के साथ पूर्ण करता है ।
वह कभी विचलित नहीं होता। परिस्तिथियाँ कितनी ही निराशाजनक क्यों न हो ,वह सदैव कर्मप्रणीत रहता है। कभी धैर्य और धीरज नहीं छोड़ता।बाहर कितनी ही अराजकता क्यों न हो ,वह अपना मन और मस्तिष्का शांत रखता है। कभी आवेश में कार्य नहीं करता।अपनी इसी स्वभाव के कारण वह सभी कार्य समय के भीतर और गुणवक्ता के साथ पूर्ण करता है ।
दिखावा नहीं, सादगी से कार्य
वह विचारधारा को इतनी सरलत से रखता है ,जैसे विषय वास्तु नहीं बल्कि वही बता रहा है जो हमे सभी बाटे है । अंतर मात्र उसके शैली का होता है।वह विचारधारा को जटिल शब्दों में न बंद कर , सरलता से ,पुरे व्यहारिकता और जोशपूर्ण रीती से बताता है ।वह शब्दमाला का इतना धनी होता है। वह जो भी कहता है ,करता है वह इतना सरल और व्यवहारिक होता है की सभी बौद्धिक क्षमता के मनुष्य उसे समझ पते है ।
वह विचारधारा को इतनी सरलत से रखता है ,जैसे विषय वास्तु नहीं बल्कि वही बता रहा है जो हमे सभी बाटे है । अंतर मात्र उसके शैली का होता है।वह विचारधारा को जटिल शब्दों में न बंद कर , सरलता से ,पुरे व्यहारिकता और जोशपूर्ण रीती से बताता है ।वह शब्दमाला का इतना धनी होता है। वह जो भी कहता है ,करता है वह इतना सरल और व्यवहारिक होता है की सभी बौद्धिक क्षमता के मनुष्य उसे समझ पते है ।
विचारधारा से पूर्ण परिभाषित
वह स्वयं को पूर्णतः विद्यार्थी परिषद से कार्य से परिभाषित कर चूका होता है । वह जो भी कार्य करता है ,उसमे परिषद की प्रेरणा निहित होती है । वह हमेशा यह ध्यान रखता है की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह वैसा ही व्यवहार करे जैसा की एक कार्यकर्ता के रूप में वह परिषद में करता है । एक बार विचारधरा में डूबने के बाद, फिर उसे जीवन के अनन्य कार्य अलग अलग नहीं, एक से प्रतीत होते है ।उसे परिषद का कार्य करने हेतु फिर कभी दुविधा नहीं होती क्यों की वह जनता है की जब जब वह कार्य कर रहा होता है, परिषद की पुण्याई में उसका योगदान हो रहा होता है।
वह स्वयं को पूर्णतः विद्यार्थी परिषद से कार्य से परिभाषित कर चूका होता है । वह जो भी कार्य करता है ,उसमे परिषद की प्रेरणा निहित होती है । वह हमेशा यह ध्यान रखता है की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह वैसा ही व्यवहार करे जैसा की एक कार्यकर्ता के रूप में वह परिषद में करता है । एक बार विचारधरा में डूबने के बाद, फिर उसे जीवन के अनन्य कार्य अलग अलग नहीं, एक से प्रतीत होते है ।उसे परिषद का कार्य करने हेतु फिर कभी दुविधा नहीं होती क्यों की वह जनता है की जब जब वह कार्य कर रहा होता है, परिषद की पुण्याई में उसका योगदान हो रहा होता है।
मानसिकता बदलता है
वह नियमो को बदलने हेतु आवेशित नहीं होता। नियम मात्र मानसिकता के प्रतिक होते है । वह मानसिकता के बदलने का इंतजार करता है और उसके लिए कार्य करता है।उसका अंतिम उद्देश्य नियम नहीं व्यक्ति का विकास होता है। वह यह जनता है की मानसिकता के बदलते ही नियम अपने आप बदलते है।
वह नियमो को बदलने हेतु आवेशित नहीं होता। नियम मात्र मानसिकता के प्रतिक होते है । वह मानसिकता के बदलने का इंतजार करता है और उसके लिए कार्य करता है।उसका अंतिम उद्देश्य नियम नहीं व्यक्ति का विकास होता है। वह यह जनता है की मानसिकता के बदलते ही नियम अपने आप बदलते है।
सच्चा देशभक्त
उसके राष्ट्र प्रेम की परिभाषा व्यक्ति व्यक्ति से जोड़ कर होती है। वह राष्ट्र प्रेम इसलिए करता है क्यों की वह राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम करता है। वह व्यक्ति को राष्ट्र से जोड़ कर देखता है और फिर वैसा ही वर्तन सभी लोगो के साथ करता है जैस कि वह राष्ट्र हेतु अपेक्षित करता है।
संवाद कौशल्य में पारंगत
वह बोलता कम सुनता ज्यादा है। आज समाज में बहुत शोर है, हर कोई अपनी धून ही गाना चाहता है। इस शोर के बीच,हमारा नेता उन आवाजो सुनता है जिसे सुनने के लिए अंतर्मुखी होना पड़ता है।वह आवाजे जिनकी अवहेलना कर दी गयी होती है ,वह जिन्हे दुनिया व्यर्थ समझती है क्यों वह उनके लाभ की विषय वस्तु नहीं। मनुष्य की प्रत्येक समस्या सुलझाई जा सकती है यदि उसे ठीक से समझा जाये।हमारा छात्र छात्र नेता संवाद कला का पंडित होता है। उसके लिए संवाद दुसरो पर प्रभाव डालने का साधन अपितु दुसरो को समझने की साधना होती है।
संवाद कौशल्य में पारंगत
वह बोलता कम सुनता ज्यादा है। आज समाज में बहुत शोर है, हर कोई अपनी धून ही गाना चाहता है। इस शोर के बीच,हमारा नेता उन आवाजो सुनता है जिसे सुनने के लिए अंतर्मुखी होना पड़ता है।वह आवाजे जिनकी अवहेलना कर दी गयी होती है ,वह जिन्हे दुनिया व्यर्थ समझती है क्यों वह उनके लाभ की विषय वस्तु नहीं। मनुष्य की प्रत्येक समस्या सुलझाई जा सकती है यदि उसे ठीक से समझा जाये।हमारा छात्र छात्र नेता संवाद कला का पंडित होता है। उसके लिए संवाद दुसरो पर प्रभाव डालने का साधन अपितु दुसरो को समझने की साधना होती है।
स्वयं के प्रति कठोर शेष हेतु नम्रप्रति कठोर और शेष हेतु नम्रा होता है। किसी परिस्तिथि में वह अपने आदर्शो को नहीं तोड़ता ,लेकिन अन्य हेतु वह धैर्य धीरज रखता है। "मै करता हु ,इसलिए तुम भी करो " वह वह कभी नहीं सोचता।विचारधारा सिखाने महत्वाकांक्षा कभी कार्यकर्ता केजरुरतो और कमियों की अवहेलना नहीं करता । वह इन्जार करता है और कर्म करता रहता है, मात्र स्वयं हेतु वह सदैव सजग रहता है| सभी नैतिक नियमो को वह कठोरता से निभाता है |
अन्दर से हर, बाहर से हरी
वह मयवि होता है ,संसार के आकर्षणों के साथ खेलता है ,ताकि उन आकर्षणों में बाधित लोगो के पास जा सके ,लेकिन वह कभी उनके मोह में फंस कर अपना ध्येय नहीं भूलता ।वह अंदर से हर और बाहर से हरी होता है।वह सभी अकर्शानो पर विजय प्राप्त कर चूका होता है | उसका अन्दर से शिवस्वरूप होता है जिसने स्वयं के सभी दुर्गुणों को परास्त किया हो जिसने पाने सभी जरूरतों को समाप्त किया हो,परन्तु बाह्य स्वरुप उस नारायण जैसा सभी की अवश्क्तायो की पूर्ति करता है |
वह मयवि होता है ,संसार के आकर्षणों के साथ खेलता है ,ताकि उन आकर्षणों में बाधित लोगो के पास जा सके ,लेकिन वह कभी उनके मोह में फंस कर अपना ध्येय नहीं भूलता ।वह अंदर से हर और बाहर से हरी होता है।वह सभी अकर्शानो पर विजय प्राप्त कर चूका होता है | उसका अन्दर से शिवस्वरूप होता है जिसने स्वयं के सभी दुर्गुणों को परास्त किया हो जिसने पाने सभी जरूरतों को समाप्त किया हो,परन्तु बाह्य स्वरुप उस नारायण जैसा सभी की अवश्क्तायो की पूर्ति करता है |
पढाई के साथ लड़ाई
अन्तः अपना अधिकतर समय राष्ट्र कार्य में बीतता है परन्तु, यह उसके लिए कोई वजह नहीं होती की वह अपने दोस्तों, परिवार अथवा अन्य जानो से दूर रहे अथवा अध्ययन पर दुर्लक्ष हो। उसका जीवन सर्व संतुलित होता है। उसके जीवन में समन्वय का मंत्र सिख लिया होता है। वह जिस पल जो भी करता है, बस उसी में रम जाता है। इस संसार में सबसे जटिल निर्माण कार्य एक माँ के गर्भ में जीव का निर्माण है, जिसे गर्भ में ९ महीने लगते है । यदि ९ महीनो में एक शसृष्टि के जीव के निर्माण कार्य पूरा हो सकता है तो जीवन के प्रत्येक कार्य की समय सीमा उससे अधिक नहीं होनी चाहिए । एक विद्यार्थी होने ने नाते, वह हमेशा अपने अध्ययन कार्य हेतु सजग रहता है। वह पढ़ाई के साथ लड़ाई करता है। उसका प्रत्येक कृत्या एक प्रेरणा होती है, जो उसके अध्ययन कार्य भी निहित होता है।
अन्तः अपना अधिकतर समय राष्ट्र कार्य में बीतता है परन्तु, यह उसके लिए कोई वजह नहीं होती की वह अपने दोस्तों, परिवार अथवा अन्य जानो से दूर रहे अथवा अध्ययन पर दुर्लक्ष हो। उसका जीवन सर्व संतुलित होता है। उसके जीवन में समन्वय का मंत्र सिख लिया होता है। वह जिस पल जो भी करता है, बस उसी में रम जाता है। इस संसार में सबसे जटिल निर्माण कार्य एक माँ के गर्भ में जीव का निर्माण है, जिसे गर्भ में ९ महीने लगते है । यदि ९ महीनो में एक शसृष्टि के जीव के निर्माण कार्य पूरा हो सकता है तो जीवन के प्रत्येक कार्य की समय सीमा उससे अधिक नहीं होनी चाहिए । एक विद्यार्थी होने ने नाते, वह हमेशा अपने अध्ययन कार्य हेतु सजग रहता है। वह पढ़ाई के साथ लड़ाई करता है। उसका प्रत्येक कृत्या एक प्रेरणा होती है, जो उसके अध्ययन कार्य भी निहित होता है।
हमारा संकल्प - राष्ट्रीय पुनर्निर्माण
हमने एक ऐसे स्वर्णिम भारत के निर्माण कार्य में जुटे हुए है ,जहाँ का विद्यार्थी संकीर्णता से पर हो विचार करता हो, भौतिकता से दूर आध्यात्मिकता की तलाश में हो। जो जात पात रंग भाषा और दलगत राजनीती से ऊपर, स्वधर्म के स्वाभिमान से साथ राष्ट्र हेतु निरंतर कार्यरत हो। समाज को कुछ ऐसे लोगो की आवश्कता है,जो उन बीजो की तरह हो जो धरती के छाती को चीर अंदर तक जाते है,फिर अपने अस्तित्व को समाप्त कर एक ऐसे वृछ का निर्माण करते है जो सहत्र कालों तक समाज को सेवा रूपी फल देता रहे| विद्यार्थी परिषद एक ऐसा ही वृछ है और विद्यार्थी परिषद के छात्र नेता काल के बीज। ऐसे छात्र नेता जो अपनी स्नेह की ऊर्जा से पत्थरों को पिघलने का दम भरते हो ,इस सध्या के महान साधक है ।ऐसे विद्यार्थी जो अपने जीवन को एक सन्देश बना दुसरो को भी एक आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा दे और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण कर भारत माता को जगत गुरु बनाने हेतु अविरत प्रयतशील रहे | ईश्वर से यह वरदान हम लेकर रहेंगे, और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इस कार्य हेतु हमारी तपस्या है ।
Friday, 3 July 2015
Wednesday, 1 July 2015
ABVP karyakartas to participate in BRICS Youth Summit
ABVP karyakartas Shri Aniket Kale, Secretary General, WOSY and Shri Sumit Kumar Maurya,
Vice President, ABVP Delhi State have reached Kazen, Russion to be the part of first BRICS Youth
Summit being held in Russia from 1-7 July 2015 in Moscow and Kazan city. This summit will see young leaders, MPs, business people, engineers and public activists from member countries participating in the summit.
Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP) as largest student organisation in the world is constantly engaging in policy advocacy in areas of education, youth and issues concerning the larger interests of the country. As the leading voice of youth of India, ABVP aims to build stronger bonds across international platforms like BRICS Youth Summit to strive for bringing solutions to the conflicts in international arena with the philosophy of ‘Vasudheva Kutumbkam’, National General Secretary of ABVP Shreehari Borikar said.
In regards to the aims of BRICS youth dimension, “to find suitable formats for active cooperation in a multicultural and multi-polar world”, ABVP believes that such platforms should work for student to student, youth to youth and people to people cooperation in every walk of life “to integrate young people in the multilateral cooperation of the BRICS countries”.
Sunday, 28 June 2015
Shri Eknath Ranade (1914 - 1982)
Shri Eknath Ranade was the youngest of eight siblings (four brothers and four sisters). He was born on 19 November, 1914, at Timtala in Amaravati District of Maharashtra.
The Ranade family was originally from Vilhe village in Rajapur Taluk of Ratnagiri District in Konkan region of Maharashtra. Shri Eknath Ranade’s father was Shri Ramakrishnarao Vinayak Ranade who served in the Great Indian Peninsular Railways in Vidrabha. He was married to Ramabai of Barve family from Pune.
Nath (as Shri Eknath Ranade was called in his childhood) was sent to Nagpur in 1921 to stay with his eldest brother Baburao. He had his primary education in Government Primary School in Phadanavispura at Nagpur. When his father’s health failed, the whole family moved to Nagpur and stayed with the eldest son.
Shri Eknath Ranade’s brother-in-law Shri Annaji Sohoni was closely associated with the Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) which was established in Nagpur in 1925 by Dr. Hedgewar. Under Annaji Sohoni’s guidance, Nath attended an RSS Shakha in 1926 and that became a turning point in his life.
He completed his Matriculation from New English High School, Mahal, in 1932. After his matriculation, he straightaway wanted to become a Sangh Pracharak but was advised by Dr. Hedgewar to finish his graduation first.
Eknathji started studying the Upanishads to counter the propoganda of Christian Missionaries in his college. As he found it difficult to interpret them, he took up the works of Swami Vivekananda. And thereby, he first learnt about the life, works and vision of Swami Vivekananda.
In 1938, Eknathji joined the RSS full time as a Pracharak. His first assignment as Pracharak was in Mahakoshal Pranta, consisting of the central part of India. He enrolled himself for L.L.B. in Sagar University which he completed in first class in 1945. During his work as the Pranta Pracharak of Madhya Bharat, Shri Eknath Ranade’s superior organisational abilities and phenomenal memory came to be widely known.
In 1948, in the aftermath of Mahatma Gandhi’s assassination, the RSS was banned for its alleged involvement. Many Swayamsevaks were arrested. Shri Eknath Ranade went underground and co-ordinated the work of the Sangh, organised Satyagraha and even negotiated with the government for lifting the ban, so much so that he was informally called the underground Sarsanghachalak during that period.
After the ban was lifted, Eknathji was posted as Pranta Pracharak of Poorvanchal (the North-East) in 1950. In Calcutta, he organised the Vastuhara Sahayata Samiti to find, help, and provide accommodation for the refugees of the Partition.
In 1953, Shri Eknath Ranade was given the additional responsibility of Akhil Bharatiya Prachar Pramukh. In 1956 he was given the charge of Sarkaryavah, or Chief Executive, of the Sangh. He became Akhil Bharatiya Bauddhik Pramukh in 1962.
In 1963, destiny took Shri Eknath Ranade to the purpose for which he was born, as some people say. He was requested by Guruji Golwalkar to take up the cause of establishing the Vivekananda Rock Memorial. His instrumental role is detailed in The Role of Eknath Ranade.
The second phase of the Rock Memorial: the Living Memorial, in other words, Vivekananda Kendra, was in Shri Eknath Ranade’s vision almost as soon as the first phase was underway. More details on the second phase of the memorial are available in The Living Memorial.
Though after launching Vivekananda Kendra, most of his time was taken by Kendra activities, he did not cut himself off from the Sangh. Whenever at Kanyakumari, he used to go for Shakha at Madahavapuram at least once a week.
Shri Eknath Ranade was a prolific and punctilious letter writer. Since he took charge as the Organising Secretary of Vivekananda Rock Memorial Committee in 1963 till his death in 1982, he wrote over 25,000 letters! He chose the North-East as the thrust area of the Kendra’s initial activities. After an extensive study of the area, seven residential schools were opened in Arunachal Pradesh where Jeevanvratis of the Kendra worked.
He procured land in Kanyakumari to establish the headquarters of Vivekananda Kendra known as Vivekanandapuram. Apart from being involved in the publication activites of the Kendra in the periodicals Yuva Bharati and Kendra Bharati, Eknathji also took series of lectures for Jeevanvratis.
The relentless pace of work claimed Shri Eknath Ranade’s health. In 1980, he collapsed during a walk and went into coma. When he recovered consciousness, he had lost partial vision and his memory almost completely. The second affliction was all the more saddening to him as he had such a phenomenal memory that he could remember the names of whoever he was introduced to. He was advised by doctors to slow down his pace of work, but this was not possible for him to adhere to.
On 22 August 1982, Shri Eknath Ranade suffered a massive and fatal heart attack in Chennai. His body was brought to Kanyakumari and cremated on 23 August. As the sun set and the saffron flag with Om was lowered on the Vivekananda Rock Memorial, the pyre was lit.
Wednesday, 3 June 2015
Thursday, 18 September 2014
ABVP Comdemn attack on RSS Sakha
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हरियाणा प्रान्त के
रोहतक जिला के जिला प्रचारक श्री प्रवीण कुमार पर हुए हमले के संबंध में
माननीय राज्यपाल जी के नाम ज्ञापन |
14 सितम्बर, रविवार सांय 5:30 बजे हुड्डा सिटी पार्क, रोहतक में बालकों की शाखा लग रही थी | सायं 5:45 पर कुछ लोग ( विकास हुड्डा उर्फ़ मोनु, देवेन्द्र हुड्डा व अन्य 3 लोग ) शाखा पर आये और कहने लगे की इस पार्क में भारत भूषण बत्रा (कांग्रेस विधायक) का कार्यक्रम हैं इसलिए 3 सेकंड में पार्क खाली कर दो|
स्वयंसेवकों ने कहा की कार्यक्रम पार्क के दूसरे कोने में हैं और हमारे से आपको को कोई परेशानी नही होगी परन्तु उन कांग्रेसी गुंडों ने संघ के जिला प्रचारक प्रवीण कुमार को जान से मारने की धमकी दी और तुरन्त बाद जिला प्रचारक व शाखा में खेल रहे छोटे बालको की बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी | यह सब देखकर वहा के एक स्थानीय व्यक्ति जीतेन्द्र गहलावत (जो उस पार्क कमेटी के सदस्य भी हैं) ने बीच बचाव किया तो उन गुंडों ने उस व्यक्ति को भी बुरी तरह से पीटा | उस मारपीट में जीतेन्द्र गहलावत के दांत भी टूट गए |
इस घटना के बाद संघ के कार्यकर्ताओ ने अपनी लिखित शिकायत सिविल लाइन थाना, रोहतक में 14 सितम्बर की शाम को ही दर्ज करा दी परन्तु इस पर अब तक कोई कार्यवाही नही की गयी और अब तक कोई FIR तक दर्ज नही की गयी | जिसके कारण संघ कार्यकर्ताओ मे इस अन्याय के प्रति भारी आक्रोश हैं |
संघ के स्वयंसेवक स्थान-स्थान पर पार्को में योग आदि की शारीरिक कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों में देशभक्ति की भावना पैदा करने का प्रयास करते है | यह संघ का दैनिक कार्यक्रम है| ऐसे में एक विधायक के आने पर पार्क को खाली करने के लिए धमकाना और जान से मारने की धमकी देते हुए बेरहमी से पिटाई करना किसी भी स्तर की कानून व्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह हैं |
यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था एवं संविधान के अनुछेद 19 का खुल्ला उल्लंघन है और
तीन दिन बाद भी उन आरोपियो को ना पकड़ना और FIR तक दर्ज ना करना दुर्भाग्यपूर्ण हैं और पुलिस प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता हैं |
राज्यपाल जी से निवदेन हैं कि हमारी शिकायत पर तुरंत मुकदमा दर्ज कर दोषियों को उनके अपराधों के अनुसार कठोर धाराएं लगा कर उन्हें तुरंत गिरफ्तार करने के निर्देश जारी करें | आशा हैं आप तुरंत कार्यवाही करेगे
14 सितम्बर, रविवार सांय 5:30 बजे हुड्डा सिटी पार्क, रोहतक में बालकों की शाखा लग रही थी | सायं 5:45 पर कुछ लोग ( विकास हुड्डा उर्फ़ मोनु, देवेन्द्र हुड्डा व अन्य 3 लोग ) शाखा पर आये और कहने लगे की इस पार्क में भारत भूषण बत्रा (कांग्रेस विधायक) का कार्यक्रम हैं इसलिए 3 सेकंड में पार्क खाली कर दो|
स्वयंसेवकों ने कहा की कार्यक्रम पार्क के दूसरे कोने में हैं और हमारे से आपको को कोई परेशानी नही होगी परन्तु उन कांग्रेसी गुंडों ने संघ के जिला प्रचारक प्रवीण कुमार को जान से मारने की धमकी दी और तुरन्त बाद जिला प्रचारक व शाखा में खेल रहे छोटे बालको की बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी | यह सब देखकर वहा के एक स्थानीय व्यक्ति जीतेन्द्र गहलावत (जो उस पार्क कमेटी के सदस्य भी हैं) ने बीच बचाव किया तो उन गुंडों ने उस व्यक्ति को भी बुरी तरह से पीटा | उस मारपीट में जीतेन्द्र गहलावत के दांत भी टूट गए |
इस घटना के बाद संघ के कार्यकर्ताओ ने अपनी लिखित शिकायत सिविल लाइन थाना, रोहतक में 14 सितम्बर की शाम को ही दर्ज करा दी परन्तु इस पर अब तक कोई कार्यवाही नही की गयी और अब तक कोई FIR तक दर्ज नही की गयी | जिसके कारण संघ कार्यकर्ताओ मे इस अन्याय के प्रति भारी आक्रोश हैं |
संघ के स्वयंसेवक स्थान-स्थान पर पार्को में योग आदि की शारीरिक कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों में देशभक्ति की भावना पैदा करने का प्रयास करते है | यह संघ का दैनिक कार्यक्रम है| ऐसे में एक विधायक के आने पर पार्क को खाली करने के लिए धमकाना और जान से मारने की धमकी देते हुए बेरहमी से पिटाई करना किसी भी स्तर की कानून व्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह हैं |
यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था एवं संविधान के अनुछेद 19 का खुल्ला उल्लंघन है और
तीन दिन बाद भी उन आरोपियो को ना पकड़ना और FIR तक दर्ज ना करना दुर्भाग्यपूर्ण हैं और पुलिस प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता हैं |
राज्यपाल जी से निवदेन हैं कि हमारी शिकायत पर तुरंत मुकदमा दर्ज कर दोषियों को उनके अपराधों के अनुसार कठोर धाराएं लगा कर उन्हें तुरंत गिरफ्तार करने के निर्देश जारी करें | आशा हैं आप तुरंत कार्यवाही करेगे
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