Monday, 24 March 2014

कब और कैसे मिलेगी जातिवादी दंश से मुक्ति ,इसकी कौन उठाएगा जिम्मेदारी -

 हमने अपनी आँखों पर बहुत सी पट्टीया बाँध ली हैं और कानों में रुइया ठूस रखी हैं |उदाहरण के तौर पर हम कह रहें हैं यह प्रत्याशी बाहर का हैं यह घर का |प्रत्याशी का व्यक्तित्व कैसा हैं , वह हमारा नेता बनने के काबिल हैं या नही इस पर विचार नही होता | आखिर पार्टी भी तो कुछ सोच कर ही प्रत्याशी को मैदान में उतारती हैं | जब एक –एक सीट का सवाल हों तब क्या पार्टी हारने के लिए चुनाव लडेगी ?आखिर हम क्यों जाति के आधार पर अपने क्षेत्र के प्रत्याशी की अभिलाषा करते हैं,ऐसी स्थिति में प्रत्याशियों का चुनाव करने में राजनीतिक दलों के समक्ष बड़ी चुनोती खड़ी हों जाती हैं |

 अच्छे नेता जो समाज को सही दिशा दे सकते हैं वे आगे नही आ पाते |यह ब्राह्मण भाई ,यह राजपूत भाई ,यह जाट भाई ,या अन्य कोई मेरी ही जाति-बिरादरी का भाई |मेरा तो यहाँ तक मानना हैं,इसी जातिवादी मानसिकता में माफियावाद व अन्य समाजिक वैमनस्यता अपना विस्तार पाती हैं | वहाँ भी हम जाने अनजाने में इस अव्यवस्था का समर्थन करते दिखाई पड़ते हैं |

 क्या आपने किसी नेता को यह कहते सुना हैं मुझे केवल मेरी ही जात का वोट चाहिए और किसी का नही ? इस जातिवाद की राजनीति में कुछ गिने-चुने लोग ही फायदा उठाते हैं,आम आदमी का या आम पार्टी कार्यकर्ता का इसमें कोई फायदा नही होता ;वह तो केवल सुर में सुर मिलाने के काम आता हैं |इसमें सबसे ज्यादा नुकसान पार्टी व उसमे काम कर रहें आम कार्यकर्ता का होता हैं |इसमें भी सबसे ज्यादा नुकसान हमारे हिन्दुत्ववादी द्रष्टिकोण का हुआ हैं और हमे बाटने का काम हुआ हैं |इसलिए मित्रों इस कोंग्रेसी संस्कृति से बाहर निकलिए और देश के बारे में चिंतन करिए |

 मित्रों ध्यान रखे ‘यथा राजा तथा प्रजा या तथा प्रजा यथा राजा ‘|

 अगर बदलाव लाना हैं तो, सर्वप्रथम राष्ट्र –हित बाकि के हित बाद में |
                      जात न पूछो साधु की ,पूछ लिज्यो ज्ञान |
                     मोल करो तलवार का ,पड़ा रहन दो म्यान ||

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