कार्य बहुत है ,उनकी सूचि बहुत लम्बी है | विद्यार्थी परिषद् छात्रो को बस यह बताएगी कि क्या करना है ,क्या होना चाहिए और क्यों होना चाहिए | उसे कैसे करना है ,उसका माध्यम क्या होना चाहिए और उसके लिए हमे स्वम् में क्या क्या कौशल्यो का निर्माण करना है उसका चिंतन प्रत्येक छात्र को स्वम करना होगा | परिषद् सिर्फ साध्य बताएगी , उस साध्य को प्राप्त करने के लिए साधन कि व्यवस्था करना यह हमारा काम है !
Monday, 31 March 2014
Saturday, 29 March 2014
जिन उद्देश्यों को लेकर हम
चलना चाहते है, उनमे न किसी प्रकार का दोष है न किसी प्रकार का पाप |
शिक्षा के भारतीयकरण और राष्ट्र की रक्षा हेतु छात्र शक्ति को रचनात्मक
कार्योप के माद्यम से प्रेरित करने का बीड़ा हमने उठाया है | इसमें कौन सा
पाप है ? साथ-साथ हम यह भी न भूले कि यह विशाल कार्य किसी भी एक छात्र या
चन्द छात्रो के हाथो संपन्न होने वाला नहीं है, उसके लिए तो एक ही धेय्य
से प्रेरित लाखो, करोड़ो छात्रो के संगठित प्रयत्नों की आवश्यकता है | इस
विशाल भारत के कोने-कोने में ऐसे धेय्यनिष्ठ और बलवान छात्रो के
विद्यार्थी परिषद् का घना जाल फैला दो, फिर इस कार्य में कोई कठिनाई न
होगी |
कभी
आप ऐसे बगीचे में जाना पसंद करेंगे जहा सिर्फ गुलाब के ही फूल हो ,या सिर्फ
गेंदे के ही फूल हो ,नहीं ना | बगीचा बनता है अनेको प्रकार के फूलो से ,उन
सब के एकत्रित महक से बगीचा लोगो को आकर्षित करता है | हमारा समाज भी उसी
बगीचे जैसा है ,सिर्फ एक ही प्रकार कि विचारधारा यहाँ हो ,ऐसा सोचना
निरंकुशता होगी , अलग अलग विचार जिनका अंतिम ध्येय विश्व कल्याण है मिलकर
इसे सुन्दर बनाते है ,मनुष्य के रहने योग्य बनाते है |
Monday, 24 March 2014
कब और कैसे मिलेगी जातिवादी दंश से मुक्ति ,इसकी कौन उठाएगा जिम्मेदारी -
हमने अपनी आँखों पर बहुत सी पट्टीया बाँध ली हैं और कानों में रुइया ठूस रखी हैं |उदाहरण के तौर पर हम कह रहें हैं यह प्रत्याशी बाहर का हैं यह घर का |प्रत्याशी का व्यक्तित्व कैसा हैं , वह हमारा नेता बनने के काबिल हैं या नही इस पर विचार नही होता | आखिर पार्टी भी तो कुछ सोच कर ही प्रत्याशी को मैदान में उतारती हैं | जब एक –एक सीट का सवाल हों तब क्या पार्टी हारने के लिए चुनाव लडेगी ?आखिर हम क्यों जाति के आधार पर अपने क्षेत्र के प्रत्याशी की अभिलाषा करते हैं,ऐसी स्थिति में प्रत्याशियों का चुनाव करने में राजनीतिक दलों के समक्ष बड़ी चुनोती खड़ी हों जाती हैं |
अच्छे नेता जो समाज को सही दिशा दे सकते हैं वे आगे नही आ पाते |यह ब्राह्मण भाई ,यह राजपूत भाई ,यह जाट भाई ,या अन्य कोई मेरी ही जाति-बिरादरी का भाई |मेरा तो यहाँ तक मानना हैं,इसी जातिवादी मानसिकता में माफियावाद व अन्य समाजिक वैमनस्यता अपना विस्तार पाती हैं | वहाँ भी हम जाने अनजाने में इस अव्यवस्था का समर्थन करते दिखाई पड़ते हैं |
क्या आपने किसी नेता को यह कहते सुना हैं मुझे केवल मेरी ही जात का वोट चाहिए और किसी का नही ? इस जातिवाद की राजनीति में कुछ गिने-चुने लोग ही फायदा उठाते हैं,आम आदमी का या आम पार्टी कार्यकर्ता का इसमें कोई फायदा नही होता ;वह तो केवल सुर में सुर मिलाने के काम आता हैं |इसमें सबसे ज्यादा नुकसान पार्टी व उसमे काम कर रहें आम कार्यकर्ता का होता हैं |इसमें भी सबसे ज्यादा नुकसान हमारे हिन्दुत्ववादी द्रष्टिकोण का हुआ हैं और हमे बाटने का काम हुआ हैं |इसलिए मित्रों इस कोंग्रेसी संस्कृति से बाहर निकलिए और देश के बारे में चिंतन करिए |
मित्रों ध्यान रखे ‘यथा राजा तथा प्रजा या तथा प्रजा यथा राजा ‘|
अगर बदलाव लाना हैं तो, सर्वप्रथम राष्ट्र –हित बाकि के हित बाद में |
जात न पूछो साधु की ,पूछ लिज्यो ज्ञान |
मोल करो तलवार का ,पड़ा रहन दो म्यान ||
अच्छे नेता जो समाज को सही दिशा दे सकते हैं वे आगे नही आ पाते |यह ब्राह्मण भाई ,यह राजपूत भाई ,यह जाट भाई ,या अन्य कोई मेरी ही जाति-बिरादरी का भाई |मेरा तो यहाँ तक मानना हैं,इसी जातिवादी मानसिकता में माफियावाद व अन्य समाजिक वैमनस्यता अपना विस्तार पाती हैं | वहाँ भी हम जाने अनजाने में इस अव्यवस्था का समर्थन करते दिखाई पड़ते हैं |
क्या आपने किसी नेता को यह कहते सुना हैं मुझे केवल मेरी ही जात का वोट चाहिए और किसी का नही ? इस जातिवाद की राजनीति में कुछ गिने-चुने लोग ही फायदा उठाते हैं,आम आदमी का या आम पार्टी कार्यकर्ता का इसमें कोई फायदा नही होता ;वह तो केवल सुर में सुर मिलाने के काम आता हैं |इसमें सबसे ज्यादा नुकसान पार्टी व उसमे काम कर रहें आम कार्यकर्ता का होता हैं |इसमें भी सबसे ज्यादा नुकसान हमारे हिन्दुत्ववादी द्रष्टिकोण का हुआ हैं और हमे बाटने का काम हुआ हैं |इसलिए मित्रों इस कोंग्रेसी संस्कृति से बाहर निकलिए और देश के बारे में चिंतन करिए |
मित्रों ध्यान रखे ‘यथा राजा तथा प्रजा या तथा प्रजा यथा राजा ‘|
अगर बदलाव लाना हैं तो, सर्वप्रथम राष्ट्र –हित बाकि के हित बाद में |
जात न पूछो साधु की ,पूछ लिज्यो ज्ञान |
मोल करो तलवार का ,पड़ा रहन दो म्यान ||
Friday, 21 March 2014
Lok Sabha Elections 2014: 10 Key Contestants Worth to Watch
The general election to the lower house Lok Sabha is to be held from 7 April to 12 May in nine phases. The polls are going to form the 16th Lok Sabha. Though some of the parties are yet to annouce their candidates, here are 10 key contestants for the Lok Sabha election.
Sonia Gandhi: Congress president and Chairperson of UPA, Sonia Gandhi is to contest from Rae Bareli. In 1999, she was also elected to Lok Sabha from Bellary in Karnataka. Sonia is a three-term successive MP from Rae Bareli since 2004. Her mother-in-law Indira Gandi was also elected from the same seat to Lok Sabha for three times.
Narendra Modi: Bharatiya Janata Party prime ministerial candidate and Gujarat Chief Minister Narendra Modi is to contest from Varanasi, the spiritual city of India. He is also likely to contest from a second seat in his home state, most probably from Ahmedabad. Another senior leader of BJP, Murli Manohar Joshi, vacated the Varanasi seat for Modi this time. Joshi is to contest from Kanpur seat against the Union Coal Minister Sriprakash Jaiswal
Rahul Gandi: Congress vice-president Rahul Gandhi is to constest from Amethi in Uttar Pradesh again. He contested from the seat successively since 2004 and this would be the third time he is contesting from the constituency.
Sushma Swaraj: The Opposition Leader in the Lok Sabha Sushma Swaraj is to contest from Vidisha constituency in Madhya Pradesh. She got elected from the same seat to the present Lok Sabha. Though she contested from the Bellary seat unsuccessfully in 1999 against Sonia Gandhi, she earned great popularity in Karnataka.
Medha Patkar: Better known for her "Narmada Bachao Andolan' movement, Medha Patkar, a social activist, is to contest from Mumbai North East constituency on a ticket from Aam Aadmi Party (AAP). She is pitted against candidates of NCP and Shiv Sena-BJP in the financial capital of India.
Mohammed Kaif: Former cricketer Mohammed Kaif will contest from Phulpur in Uttar Pradesh on a Congress ticket. Late prime minister Jawaharlal Nehru had won the seat three times. The Lok Sabha seat had been a baston of Samajwadi Party from 1996 till 2009. However, in the 2009 polls, Bahujan Samaj Party won the seat. This time, the cricketer's popularity will be put to the test in the election.
Nandan Nilekani: Former Chairman of Unique Identification Authority of India (UIDAI) Nandan Nilekani, expected to be the dark horse of Congress, has been very keen to win from Bangalore South constituency. He is to face the BJP's HN Anantha Kumar, a former Union minister and a five-time MP.
Arun Jaitley: For the first time, BJP senior leader Arun Jaitley is constesting the Lok Sabha election. He is getting into the poll fray from Amritsar constituency in Punjab, which has sent Navjot Singh Siddu to the Lok Sabha since 2004. Jaitley has been a familiar face on TV as the BJP spokesperson.
Shatrughan Sinha: Popular yesteryear actor Shatrughan Sinha is to re-contest from Patna Sahib constituency in Bihar. He was elected from the same seat in 2009. He was a Union Cabinet Minister of Health and Family Welfare from January 2003 to May 2004.
Rajnath Singh: BJP president Rajnath Singh is contesting from the Lucknow seat. The constituency was a fortess to former Prime Minister Atal Bihar Vajpayee from 1991 to 2004. Last time, Rajnath had won from the Ghaziabad constituency.
शर्म तुमको मगर नहीं आती!
'कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास गलतियों का इतिहास है।' ये शब्द किसी
दक्षिणीपंथी के नहीं वरन् प्रख्यात् वामपंथी राहुल सांकृत्यायन के हैं। जो
वामपंथ को ठीक से नहीं जानते उन्हें आश्चर्य होता है कि अमुक मुद्दे पर
वामपंथ ने ऐसा स्टैण्ड क्यों लिया? लेकिन जो वामपंथ का इतिहास थोड़े भी ठीक
ढंग से जानते हैं उन्हें तनिक भी आश्चर्य नहीं होता। केवल सहजबोध से भारतीय
वामपंथ के स्टैण्ड की भविष्यवाणी की जा सकती है। यह बात कला, साहित्य और
राजनीति तीनों के बारे में उतनी ही सच है। बस, राष्ट्रविरोध और
हिन्दू-विरोध यही दोनों ऐसे प्रतिमान हैं जिन पर वामपंथ के सारे निर्णय और
स्टैण्ड निर्भर करते हैं। कम-से-कम कम्युनिस्ट पार्टी का अब तक का इतिहास
इसका गवाह है। आगे सद्बुध्दि आ जाए तो बात कुछ और है, लेकिन इसकी संभावना
नहीं दिखती। लेकिन प्रश्न उठता है इसके कारण क्या हैं? वस्तुत: इसके कारण
कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना में ही निहित हैं। जिस तरह भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी आदि दल हैं उस तरह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
नहीं है। यह 'भारत की कम्युनिस्ट पार्टी' (Communist Party of India) है।
इसका मतलब है कि यह कम्युनिस्ट पार्टी की भारत स्थित शाखा है। अत: इसके
निर्णय स्वतंत्र हो ही नहीं सकते। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को
अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट पार्टी का 30 दिसम्बर 1927 को लिखा गया गुप्त
पत्र इसका प्रमाण है - ''कम्युनिस्ट पार्टी को असंदिग्ध रूप से कम्युनिस्ट
इण्टरनेशनल का एक अंग होना चाहिए, अन्यथा उसे अपने आप को कम्युनिस्ट कहने
का अधिकार भी नहीं है। जिन लोगों को विश्व भर में निरन्तर संघर्ष करनेवाली
एक संस्था के इस संगठन-सिध्दांत में विदेशी नियंत्रण की बू आती है, वे
कम्युनिस्ट नहीं हैं।'' (एम.आर. मसानी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, पृ.
333)
लेकिन, कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल का अंग होते हुए भी रूस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने निर्णय स्वतंत्र रखे। और तमाम किसान मजदूरों के आन्दोलनों से सम्बध्द होते हुए भी राष्ट्रवाद का समर्थन किया। चीन और रूस दोनों में मगर आपसी तनातनी बनी रही, तो इसके पीछे यही कारण है। इन दोनों देशों का राष्ट्रवाद कहीं-न-कहीं साम्राज्यवाद की ओर पर्यवसित होता है, पर दोनों में से किसी देश की कम्युनिस्ट पार्टी ने इसका विरोध नहीं किया, राष्ट्र-राज्य का विरोध तो और बात है। कम्युनिस्ट सोवियत संघ और चीनी गणतंत्र का संविधान इसके प्रमाण हैं। सोवियत संघ के 1977 का अनुच्छेद 62 स्पष्ट कहता है - ''रूस के प्रत्येक नागरिक का यह पुनीत कर्तव्य है कि वह समाजवादी मातृभूमि की रक्षा करे। मातृभूमि के द्रोह से अधिक गंभीर कोई अपराध नहीं है।''
लेकिन, कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल का अंग होते हुए भी रूस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने निर्णय स्वतंत्र रखे। और तमाम किसान मजदूरों के आन्दोलनों से सम्बध्द होते हुए भी राष्ट्रवाद का समर्थन किया। चीन और रूस दोनों में मगर आपसी तनातनी बनी रही, तो इसके पीछे यही कारण है। इन दोनों देशों का राष्ट्रवाद कहीं-न-कहीं साम्राज्यवाद की ओर पर्यवसित होता है, पर दोनों में से किसी देश की कम्युनिस्ट पार्टी ने इसका विरोध नहीं किया, राष्ट्र-राज्य का विरोध तो और बात है। कम्युनिस्ट सोवियत संघ और चीनी गणतंत्र का संविधान इसके प्रमाण हैं। सोवियत संघ के 1977 का अनुच्छेद 62 स्पष्ट कहता है - ''रूस के प्रत्येक नागरिक का यह पुनीत कर्तव्य है कि वह समाजवादी मातृभूमि की रक्षा करे। मातृभूमि के द्रोह से अधिक गंभीर कोई अपराध नहीं है।''
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